राममंदिर निर्माण की राह में तो बाधाएँ हैं पर अयोध्या में सड़कें बनवाने से किसने रोका है?

अयोध्या में क्या सिर्फ राम मंदिर ही एकमात्र बड़ा मुद्दा है या फिर कुछ और भी ऐसी चीजें हैं जिनकी यहाँ की स्थानीय जनता को जरूरत है जब इसकी पड़ताल की गयी तो पता चला कि भगवान राम की यह नगरी वर्षों से सरकारी उपेक्षा की शिकार है। चला कि भगवान राम श्रीरामजन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण को लेकर चल रही बहस के बीच अयोध्या जाकर जमीनी स्थिति का हाल जानना चाहा और लोगों की राय जानने का प्रयास किया तो कई ऐसी चीजें सामने आईं जिनका मुख्यधारा के मीडिया में जिक्र ही नहीं होता। अयोध्या में राम मंदिर मुद्दा क्या 2019 के लोकसभा चुनावों के परिणामों पर सीधा असर डालेगा, जब यह बात आप लोगों से पूछते तो स्पष्ट जवाब आता है- हाँ। लेकिन अयोध्या में क्या सिर्फ राम मंदिर ही एकमात्र बड़ा मुद्दा है या फिर कुछ और भी ऐसी चीजें हैं जिनकी यहाँ की स्थानीय जनता को जरूरत है जब इसकी पड़ताल की गयी तो पता चला कि भगवान राम की यह नगरी वर्षों से सरकारी उपेक्षा की शिकार हैं। यह सही कि राम मंदिर निर्माण की राह में अभी कानूनी बाधाएं हैं लेकिन सरकारों से यह तो पूछा ही जा सकता हैं कि अयोध्या में सड़कें बनवाने से उन्हें कौन-सी कानूनी अड्चन रोक रही है? आप अयोध्या के भीतरी इलाकों में जरा जाकर देखिये सड़कों का हाल बेहद बुरा है। हाईवे आदि छोड़ दें तो शहर की कई सड़कें तुरन्त मरम्मत की माँग करती दिखाई पडेगी। हिन्दुओं को अपने आराध्य भगवान श्रीराम को तिरपाल में देखकर जितना दुःख होता है उतना ही दुःख सड़कों पर तुरन्त मरम्मत की माँग करती दिखाई पडेगी। हिन्दुओं को अपने आराध्य भगवान श्रीराम को तिरपाल में देखकर जितना दुःख होता है उतना ही दुःख सड़कों पर गायों की हालत देखकर होता है। भाजपा और संघ परिवार के लोग गौ माता को लेकर काफी राजनीतिक बातें करते हैंलेकिन राम की नगरी में जब गौ माता पुराने कपड़े या गत्ते के टुकड़े खाते हुए सड़कों पर दिखती हैं तो सवाल उठाना तो बनता ही है। पवित्र नदी सरयू के तट पर सवा लाख दीये जलाकर रोशनी करना या सरयू माता की आरती करना अच्छा है लेकिन जरा सरयू के तटों पर साफ-सफाई पर भी ध्यान देना चाहिए। तटों पर सीढ़ियों से उतरते ही जिस प्रकार गंदगी से सामना होता है उससे सारी श्रद्धा और आस्था को ठेस पहुँचती है। अयोध्या नगरी पूरे विश्व की दृष्टि में आध्यात्मिक पयर्टन का केंद्र भी हैं लेकिन इसे नजर से देखा जाये तो यहाँ सुविधाओं का भारी अभाव है। इसके लिए सिर्फ वर्तमान सरकार को ही दोषी ठहराना उचित नहीं होगा। शायद राजनीतिक दलों को लगता रहा होगा कि अयोध्या का विकास करवाने से हम पर कहीं साम्प्रदायिक होने का ठप्पा नहीं लग जाये। अयोध्या को जैसे हर आधुनिक चीज से दूर रखने का षड्यंत्र किया गया है। ना यहाँ के बाजारों में बाहर से आने वाले लोगों के हिसाब से चीजें उपलब्ध हैं ना ही बड़ी संख्या में अच्छे होटल उपलब्ध हैं। परिवहन के साधनों की भी जैसी व्यवस्था एक प्रख्यात आध्यात्मिक नगरी में होनी चाहिए वैसी नहीं है। श्रीरामजन्मभूमि पर राम मंदिर वनेगा या कुछ और इस बात का फैसला तो बाद में होगा लेकिन श्रीराम से जुड़े अन्य मंदिरों मसलन श्रीराम की राजगद्दी जाकर देखिये मंदिर का क्या हाल है, जरा सीता रसोई की हालत देखिये क्या है ? यह सब हिन्दुओं की आस्था के केंद्र हैं जब एएसआई जैसी सरकारी संस्थाएं अन्य शहरों में किलों और गुंबदों की देखरेख करती हैं, ताजमहल का पत्थर काला पड़ जाये तो चिंता हो जाती है तो भगवान राम से जुड़े मंदिरों की देखरेख क्यों नहीं की जा सकती ? क्या यह सब भारत की धरोहरें नहीं हैं? यह सही है कि कुछ समितियां इन मंदिरों का रखरखाव कर रही हैं लेकिन इनका सहयोग तो सरकारी संस्थाएं कर ही सकती हैं। भगवान श्रीराम को तिरपाल में रख कर देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से भी ज्यादा सुरक्षा दी गयी है लेकिन मंदिर में प्रवेश रास्ते की ओर आने वाली सड़क ही खराब है। आसपास के इलाके को सुंदर बनाया जाये तो बहुत अच्छा रहेगा।


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